चाईबासा सदर अंचल में भूमि घोटाले की परतें खुलने लगीं, रामहरि गोप ने उपायुक्त से उच्चस्तरीय जांच की मांग की
Chaibasa:- पश्चिमी सिंहभूम जिला अंतर्गत सदर अंचल क्षेत्र में भूमि बंदोबस्ती, नामांतरण एवं अवैध कब्जों को लेकर बड़ा घोटाला उजागर हुआ है। इस संबंध में एंटी करप्शन आफ इंडिया के झारखंड प्रदेश अध्यक्ष रामहरि गोप ने उपायुक्त चाईबासा को एक विस्तृत ज्ञापन सौंपते हुए उच्चस्तरीय स्वतंत्र जांच समिति के गठन की मांग की है।
ग्राम मुण्डाओं द्वारा सरकारी जमीन की अवैध बंदोबस्ती का आरोप
रामहरि गोप के अनुसार, गितिलपी, सिकुरसाई, मतकमहातु, गुटुसाई, टोन्टो, डिलियामर्चा, कपरसाई, कमारहातु समेत कई गांवों में ग्राम मुण्डाओं द्वारा पैसे लेकर अयोग्य व्यक्तियों को कच्चा बंदोबस्ती किया गया है, जिनमें बाहरी जिले और राज्य के लोग भी शामिल हैं।
उन्होंने कहा कि, जनहित योजनाओं के लिए जमीन नहीं मिल रही, और वहीं सरकारी भूमि को गैरकानूनी तरीके से निजी हाथों में सौंपा जा रहा है।
सरकारी जमीन पर नामांतरण तक कर दिया गया!
उन्होंने आरोप लगाया कि कई मामलों में बिना वैध बंदोबस्ती के नामांतरण भी कर दिया गया है। इस संबंध में वाद संख्या 621/2022-23, 622/2022-23, 623/2022-23 समेत दर्जनों मामलों की निष्पक्ष जांच की मांग की गई है।
खासमहल जमीन की धड़ल्ले से हो रही अवैध बिक्री चाईबासा शहरी क्षेत्र की खासमहल जमीन लीज धारकों द्वारा बिना सरकारी अनुमति के खुलेआम बेची जा रही है, जबकि लीज नवीकरण वर्षों से लंबित है। इससे सरकार को करोड़ों रुपये के राजस्व की हानि हो रही है।
आदिवासी जमीनों पर अवैध कब्जा, कई नामचीन व्यवसायी शामिल
रामहरि गोप ने आरोप लगाया कि छोटानागपुर काष्तकारी अधिनियम 1908 का उल्लंघन कर गैर-आदिवासी व्यक्तियों ने आदिवासी भूमि पर कब्जा जमा लिया है। उन्होंने कई नामों की सूची देते हुए कहा कि ये कब्जेदार मुख्य सड़कों पर दुकानों, गैरेज और रेस्टोरेंट चला रहे हैं। इसमें टाटा-चाईबासा और सरायकेला मुख्य मार्ग के प्रतिष्ठान शामिल हैं।
तालाबों पर निर्माण, NGT और सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना
नगर परिषद क्षेत्र के मधुबाजार, मंगला हाट, थॉमसन तालाब, धोबी तालाब जैसे सरकारी जलाशयों को समतल कर अतिक्रमण कर निर्माण किए जा रहे हैं। रामहरि गोप ने इसे राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) और माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का खुला उल्लंघन बताया।
*ज्ञापन में उठाई तीन प्रमुख मांगें*
1. समस्त मामलों की उच्चस्तरीय स्वतंत्र जांच।
2. विगत 15 वर्षों के सभी भूमि अंतरण की समीक्षा।
3. दोषियों व संलिप्त अधिकारियों पर कठोर कार्रवाई।
निष्कर्ष:-
यह मामला न केवल भूमि प्रशासन की विफलता दर्शाता है, बल्कि आदिवासियों के भूमि अधिकार, पर्यावरण सुरक्षा और सरकारी राजस्व को हो रहे नुकसान की गहरी तस्वीर भी पेश करता है। अब देखना यह होगा कि प्रशासन इस पर क्या कदम उठाता है।