कार्तिक पूर्णिमा-देव दीपावली में सरायकेला में रहा बोइतो वंदाण उत्सव का उल्लास


सरायकेला/दीपक कुमार दारोघा: कार्तिक पूर्णिमा देव दीपावली में जिला मुख्यालय सरायकेला में बोइतो वंदाण उत्सव का उल्लास रहा।
लोग तड़के सुबह खरकाई नदी पहुंचे। स्नान की एवं पूजा रश्म के बाद केला पौधा की छाल से बनी नौका पानी में अवतरण  किया। नावों को फूल, सुपारी, पान के पत्ते और दीयों से सजाया गया था।


इस दौरान "आका मां बुई, गुआ पानो थोई, गुआ पानो तोर, मासको धरमों मोर " जैसे ओड़िया भाषायी बोली महिलाओं की कंठ से सुनने को मिला। मान्यता है कि प्राचीन काल में ओड़ीसा(उत्कल) के साधव( ट्रेडर्स) व्यवसाय हेतु जल मार्ग से जावा, सुमत्रा वाली सहित विभिन्न देश का यात्रा करते थे। साधव नौका से कार्तिक महीना में  यात्रा करते थे। महिलाएं (साधवो बहू) नौका का पूजा अर्चना कर साधवों को व्यवसाय के लिए भेजते थे।


सूत्रों के मुताबिक 1833 के बाद भारत में अंग्रेज (ब्रिटिश) ने विभिन्न प्रकार टैक्स लगाकर ओड़ीसा सहित देश के कृषि व व्यवसाय पर अंकुश लगा दिया। आज भी लोग साधवों की चर्चा करते नहीं भूलते। उनके कृतित्व को याद करते हुए बोइतो बंदाण  उत्सव मनाते आ रहे हैं। खरकाई नदी के माजणा घाट, कुदरसाई घाट, जगन्नाथ घाट में लोगों की भीड़ रही। उपासना पूर्वक लोगों ने बोइतो बंदाण की रश्म निभाया। 


उत्सव में श्री मंदिर में भी भक्त श्रद्धालुओं की भीड़ रही। भक्त श्रद्धालुओं ने पूजा अर्चना की एवं श्री जगन्नाथ के प्रति आस्था जताया। मान्यता है कि भगवान विष्णु ने इसी दिन मत्स्य अवतार में शंखशुर नामक राक्षस का वध किया था। इसलिए देवलोक में देव दीपावली मनाया जाता है।


सूत्रों के मुताबिक इसी दिन राजा हरिश्चंद्र के पिता राजा सत्यव्रत अपने पूर्ण कर्म के कारण दिव्य देह के साथ स्वर्ग गए थे। देव के प्रति मानव की भक्ति आस्था युगों से रही है। कार्तिक पूर्णिमा को सरायकेला श्री मंदिर में भी इसका झलक देखने को मिला। नदी घाटों से श्री मंदिर तक भक्ति उल्लास का माहौल रहा।

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