Martyr's Day Celebration in Serengsia Valley: सेरेंगसिया घाटी में ऐसे शुरू हुई थी शहीद दिवस मनाने की परंपरा, आज मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन शहीदों को देंगे श्रद्धांजलि

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन रविवार को आयेगें चाईबासा के सेरेंगसिया घाटी में शहिदो को श्रद्वांजली देंगे शहीद दिवस सेरेंगसिया के शहिदो को नमन के साथ साथ परियोजनाओं का शिलान्यास उद्यघाटन एवं परिसंसम्पति वितरण किया जायेगा

सुरक्षा के घेरे में रहेगी सेरेंगसिया घाटी,जिला प्रशाषन व पुलिस प्रबंधन नें की पुरी तैयारी

मंत्री दीपक बिरूवा व उपायुक्त कुलदीप चौधरी तथा एसपी आशुतोष शेखर व डीडीसी संदीप मिणा नें लिया कार्यक्रम स्थल का जायजा

मुख्यमंत्री के साथ चाईबासा विधायक सह मंत्री दीपक बिरूवा सहीत सभी विधायक होगें शामील

असिस्टेंट कमिश्नर डॉ देवेंद्रनाथ सिंकू ने किया था 42 वर्ष पूर्व इसका आगाज

मुख्यमंत्री झारखंड सरकार  को हर वर्ष की इस वर्ष भी सेरेंगसिया शहीद दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेने जहां शहिदों को श्रद्वाजंली देने आयेगें वहीं जनसभा में भी शिरकत करेगें

मुख्यमंत्री आगमन को लेकर शहीद स्थल से लेकर जनसभा कार्यक्रम स्थल तक पुरी  कड़ी सुरक्षा व्यवस्था किया गया है, जहां परिंदा भी पर नहीं मार सकती है, वहीं जिला प्रशाषन भी पुरी तैयारी कर ली है

मुख्यमंत्री का नगर आगमन हवाई मार्ग से करीब एक बजे पहूंचेगें तथा पहले वीर शहिदों को श्रद्वाजंली देगे उसके वाद जनसभा कार्यक्रम को संबोधित करेगें


चाईबासा: ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ कोल विद्रोह की साक्षी रही ऐतिहासिक सेरेंगसिया घाटी में  शहीद दिवस मनाने की परंपरा आज से करीब 42 वर्ष पूर्व शुरू हुई थी। इसकी शुरूआत डॉ देवेंद्रनाथ सिंकू नामक एक सामाजिक कार्यकर्ता ने अपने कुछ समर्थकों के साथ मिलकर की थी। लेकिन बाद में वे हमेशा के लिये गुमनाम रहे।


वे हाटगम्हरिया प्रखंड के जामडीह गांव के रहनेवाले थे और वे एकीकृत बिहार में असिस्टेंट कमिश्नर (सेल टैक्स) पद पर कार्यरत थे और उच्च शिक्षित भी थे। उन्होंने पटना से पीएचडी की पढ़ाई की थी। इलाके में उनकी गिनती एक प्रबुद्ध व्यक्ति के रूप में होती थी। चूंकि ऐतिहासिक तथा सामाजिक कार्यों में उनकी रूचि थी।


सेरेंगसिया युद्ध के बारे में उस समय अधिकत्तर लोग बेखबर थे। इसलिये डॉ देवेंद्रनाथ सिंकू ने गांवों में जनजागरण अभियान चलाकर लोगों को इस गुमनाम सेरेंगसिया युद्ध के बारे में जागरूक किया था। शहीदों की कुर्बानी विस्मृत न हो, इसके लिये घाटी में शहीद दिवस मनाने की अपील भी की थी। समाज के लोगों ने इसका भरपूर समर्थन किया।

फिर वर्ष 1982 में  शहीद दिवस मनाने की परंपरा की शुरूआत हुई। शुरू में कम लोग आये। बाद में इसकी संख्या बढ़ती चली गयी। शहीद दिवस पर फुटबॉल टुर्नामेंट समेत मेले का भी आयोजन होने लगा, तो भीड़ और बढ़ती गयी। इस घाटी में  सात शहीदों के स्मारक बनाये गये हैं जिनमें पोटो हो, बेड़ाई हो, पुंडुवा हो, बेराई हो, नारा हो, देवी हो तथा सुगनी हो के नाम शामिल हैं।

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