चाईबासाःजंगलों के बीच छिपा दर्द: शुकरपाड़ा गांव में गंभीर रूप से बीमार बच्ची, इलाज के अभाव में खतरे में जीवन

 चाईबासाःजंगलों के बीच छिपा दर्द: शुकरपाड़ा गांव में गंभीर रूप से बीमार बच्ची, इलाज के अभाव में खतरे में जीवन

नोवामुंडी प्रखंड के जेटेया थाना क्षेत्र के शुकरपाड़ा गांव में एक 1 साल 3 महीने की बच्ची एक दुर्लभ और गंभीर बीमारी से जूझ रही है

गांव में नहीं पहूंचती है स्वास्थय विभाग के द्वारा चलाये जाने वाली जागरूकता अभियान के दल

सामाजिक कार्यकर्ता प्रमिला पात्रो जब इस सूचना के बाद गांव पहुँचीं तो उन्होंने पाया कि बच्ची के पिता शारदा केराई स्वंय एक दैनिक मजदूर हैं और उनकी पिता जर्मन केराई गंभीर रूप से बीमार हैं

संतोष वर्मा 

 Chaibasaःएक ओर जहां झारखंड सरकार गांव गांव में बेहतर स्वास्थय सेवा बहाल करने और बेहतर ईलाज की सुविधा उपलब्ध कराने की दाबा करती है. वहीं राज्य सरकार के स्वास्थय सुविधा को मुंह चिढ़ा रही है पश्चिमी सिंहभूम जिले के नोवामुण्डी प्रखंड क्षेत्र के जेटेया थाना अंतर्गत पड़ने वाले शुकरापाड़ा गांव में एक बच्चा दम तोड़ता नजर आ रहा है.मजे की तो यह है इस गांव स्वास्थय विभाग की टीम और ना ही चलंत स्वास्थय वाहन की गाड़िया पहूंचती है. जिसके कारण इन क्षेत्र में इस आधुनिक युग में भी ग्रामीण ईलाज के बजाय झारफुंक के चक्कर में सिमटे हुए है और कई जान गवां बैठे है. केवल जागरूकता का अभाव. 


ज्ञात हो की पश्चिमी सिंहभूम जिले के सारंडा क्षेत्र में पड़ने वाले नोवामुण्डी प्रखंड क्षेत्र के जेटेया थाना अंतर्गत पड़ने शुकरापाड़ा गांव में इलाज के अभाव में एक बच्चे की जान खतरे में है.  झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले के नोवामुंडी प्रखंड के जेटेया थाना क्षेत्र के शुकरपाड़ा गांव में एक 1 साल 3 महीने की बच्ची एक दुर्लभ और गंभीर बीमारी से जूझ रही है। बच्ची का सिर उसके शरीर की तुलना में असामान्य रूप से बड़ा होता जा रहा है, जिससे उसके जीवन पर गहरा संकट मंडरा रहा है।

सामाजिक कार्यकर्ता प्रमिला पात्रो जब इस सूचना के बाद गांव पहुँचीं तो उन्होंने पाया कि बच्ची के पिता शारदा केराई र्स्वयं एक दैनिक मजदूर हैं और उनकी पिता जर्मन केराई गंभीर रूप से बीमार हैं। उनके हाथ में पुराना घाव और पैरों में सूजन है, जो लंबे समय से ठीक नहीं हो पा रहा। परिवार ने बताया कि वे एक बार इलाज के लिए बाहर गए थे, लेकिन उन्हें ₹15,000 का खर्च बताया गया, जो उनकी आर्थिक स्थिति से बाहर था। पैसे की कमी और जागरूकता के अभाव में उन्होंने बच्ची का इलाज झाड़-फूंक और पुजारी के पूजा-पाठ के जरिए शुरू करवा दिया। गांव जंगलों के बीच बसा हुआ है, जहाँ तक पहुँचना मुश्किल है और आज भी कोई सरकारी सुविधा नहीं पहुँची है। गांव के लोग न तो हिंदी बोलते हैं और न ही ओड़िया, जिससे संवाद और सरकारी योजनाओं की जानकारी पहुंचने में कठिनाई होती है। प्रमिला पात्रो ने प्रशासन से आग्रह किया है कि इस मामले को गंभीरता से लिया जाए और बच्ची को तुरंत मेडिकल सहायता उपलब्ध कराई जाए। साथ ही ऐसे दूरदराज के गाँवों में स्वास्थ्य जागरूकता, सरकारी योजनाओं की जानकारी और चिकित्सा सुविधा पहुंचाई जाए।

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