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जिले के सरकारी विद्यालयों में विद्यालय स्तर पर विज्ञान प्रदर्शनी में दिखाई प्रतिभा; जिला शिक्षा अधीक्षक चार्ल्स हेंब्रम ने बालक मध्य विद्यालय पहुंचकर स्कूली बच्चों की जानी जिज्ञासा।



सरायकेला : सरायकेला प्रखंड के कुल 65 विद्यालयों सहित जिले भर के सरकारी विद्यालयों में विद्यालय स्तर पर विज्ञान प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। जिसमें स्कूली बच्चों ने विज्ञान आधारित विभिन्न विषयों पर प्रोजेक्ट तैयार कर खूबसूरती के साथ मॉडल प्रदर्शित करते हुए प्रतिभा दिखाई। इसे लेकर जिला शिक्षा अधीक्षक चार्ल्स हेंब्रम सरायकेला बालक मध्य विद्यालय पहुंचे। जहां उन्होंने स्कूली बच्चों द्वारा विज्ञान प्रदर्शनी में प्रदर्शित किए गए सभी प्रोजेक्ट वर्क को बारी बारी से देखा। मौके पर जिला शिक्षा अधीक्षक ने प्रदर्शित किए गए कुल 12 प्रदर्शो में विशेष रूचि दिखाते हुए प्रोजेक्ट कर्ता स्कूली बच्चों से सवाल जवाब किए। जहां उन्होंने स्कूली बच्चों को संबंधित विषयों में और बेहतर प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित किया। इसके बाद जिला शिक्षा अधीक्षक विद्यालय के कक्षा पहली से पांचवी तक के छात्र-छात्राओं से विशेष रूप से मिलते हुए उनके शिक्षा अध्ययन के विषय में जाना। मौके पर विद्यालय के नन्हे मुन्ने कक्षा पहली से पांचवी तक के बच्चों ने अंग्रेजी में संविधान की प्रस्तावना का पाठ कर सुनाया। जिसे सुनकर जिला शिक्षा अधीक्षक गदगद हो उठे। और उन्होंने सभी को बेहतर प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित करते हुए शुभकामनाएं दी। मौके पर सहायक कार्यक्रम पदाधिकारी सुभाष हेंब्रम, एमआईएस कोऑर्डिनेटर अमित विश्वकर्मा, प्रखंड कार्यक्रम पदाधिकारी रबिकांत भकत, प्रखंड साधन सेवी गौतम कुमार, प्रखंड एमडीएम प्रभारी राजाराम महतो एवं विद्यालय के प्रधानाध्यापक गंगाराम तियु सहित समस्त शिक्षक शिक्षिकाएं उपस्थित रहे।
इस अवसर पर विद्यालय के विज्ञान प्रदर्शनी में प्रदर्शित किए गए "आ अब लौट चलें....." के प्रदर्श को विशेष सराहा गया। जिसमें स्कूली बच्चों द्वारा पूर्व के समय में ग्रामीण परिवेश में सरल मशीनों के उपयोग से सरल और स्वस्थ ग्रामीण जीवन को दर्शाया गया था। जिसमें बताया गया था कि एक मूल परंपरागत ग्रामीण परिवेश सतत पोषणीय और स्वास्थ्य हित का विषय रहा है। इसके माध्यम से परंपरागत ग्रामीण परिवारों में उपयोग किए जाने वाले कुछ सरल मशीन अब लुप्त प्राय होने की स्थिति में पहुंच चुकी हैं। जिसमें फूस और खपड़े से छाए हुए मिट्टी के घरों की जगह गांव में अब सीमेंट, कंक्रीट और ईंटों से बनी घरों ने ले लिया है। जिसका परिणाम हो रहा है कि घरों में प्राकृतिक वायु और प्राकृतिक प्रकाश नहीं पहुंच रहा है। और गांव की लोग विभिन्न रोगों से ग्रसित हो रहे है। गांव के परंपरागत घरों में पाई जाने वाली एक प्रसिद्ध सरल मशीन "ढेंकी" का चलन अब लगभग समाप्त हो चला है। जिसके कारण गांव के किसान भी अपनी उपज के धान बाजारों में बेचकर बाजारों से पॉलिश किए हुए चावल खरीद कर खा रहे हैं। इससे मूल चावल की मिठास खत्म होने के साथ-साथ मकर जैसे महान प्रकृति पर्व पर प्रसिद्ध पीठा का स्वाद भी फीका पड़ने लगा है। यही हाल रहा तो आने वाली पीढ़ी के लिए पीठा जैसा परंपरागत खाद्य पदार्थ इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह जाएगा। और ढेंकी की प्रथा खत्म होने से गांव के बच्चे से लेकर वृद्ध तक गैस्ट्रिक और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित हो रहे हैं।
इसी प्रकार अन्य सरल मशीन ओखली, जांता, होममेड चूल्हा और सिलबट्टा भी अब ग्रामीण परिवेश में कम ही उपयोग में देखे जा रहे हैं। जिसकी जगह आधुनिक मशीनों ने ले ली है।

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