इस पूरे खेल में गर्दन सिर्फ कांग्रेस की फंसती नजर आ रही है. हालांकि कई बार आरोपों के घेरे में झामुमो के नेता भी रहे हैं, आज तक झामुमो से जुड़े किसी भी नेता या उसके सहयोगी के पास के कैश की बरामदगी नहीं हुई है.
यह बात झामुमो नेताओं को राहत तो जरुर प्रदान कर सकती है, लेकिन बड़ा सवाल है यह है कि जिस प्रकार से जांच की तलवार मंत्री आलमगीर आलम और कांग्रेस अध्यक्ष राजेश ठाकुर की ओर बढ़ती नजर आ रही है. झामुमो अपने को कब तक बेदाग होने का दावा ठोंकती रहेगी.
चाईबासा : झारखंड में 13 मई से लोकसभा चुनाव की शुरुआत होनी है. इस दिन पलामू, खूंटी, लोहरदगा और सिंहभूम में मतदान होना है, लेकिन इसके पहले ही ईडी की छापेमारी ने सियासी भूचाल ला दिया है, मंत्री आलमगीर आलम के पीसी संजीव लाल का नौकर जहांगीर आलम के आवास के 35 करोड़ कैश बरामद होते ही कांग्रेस रणनीतिकारों को सांप सुंधता नजर आ रहा है. हालत यह हो गयी कि राहुल गांधी की रैलियों से मंत्री आलमगीर आलम दूरी बनाते दिख रहे हैं.
जमशेदपुर और गुमला की रैली में मंत्री आलमगीर आलम की झलक देखने को नहीं मिली. खबर तो यह भी है कि उन्हे मंच से दूर रहने की हिदायत दी गयी थी. हालांकि इस मामले में एक नाम कांग्रेस अघ्यक्ष राजेश ठाकुर का भी है, दावा किया जा रहा है कि नोटों के बंडल से एक नोट मिला है. जिसमें राजेश ठाकुर की ओर से तबादले की लिस्ट थमाई गयी थी. इस हालत में मंत्री आलमगीर आलम और राजेश ठाकुर भी ईडी की चपेट में आ जाय, इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता. बावजूद इसके राजेश ठाकुर राहुल गांधी के साथ मंच साक्षा करते दिख रहे हैं.
राजधानी रांची के सियासी गलियारों में राजेश रजक की चर्चा तेज
निश्चित रुप से यह कैश प्रकरण अब झारखंड में सबसे बड़ा सियासी मुद्दा बनने वाला है. जिसकी शुरुआत पीएम मोदी के भाषणों से हो भी चुकी है. लेकिन इस सबसे के बीच राजधानी रांची के सियासी गलियारों में एक नाम तेजी से उछल रहा है, वह नाम है ग्रामीण कार्य विभाग कोल्हान प्रमंडल में कार्यपालक अभियंता के रुप से पदस्थापित राजेश रजक का. राजेश रजक की गिनती दबंग कार्यपालक अभियंता में होती है. बताया जाता है कि राजेश रजक की मर्जी के बगैर ग्रामीण कार्य विभाग में एक फाइल नहीं हिलती है. इनकी पकड़ के आगे माननीय भी पानी भरते नजर आते हैं.
खबर है कि एक स्थानीय विधायक के राजेश रजक के खिलाफ रांची में उपर तक गुहार लगायी थी, लेकिन राजेश रजक का बाल भी बांका नहीं हुआ. इसका कारण है, राजेश रजक का सत्ता के गलियारे में मजबूत पकड़. स्थानीय जानकारों का दावा है कि कौन सा टेंडर किस ठेकेदार के हिस्से जाना है, यह सब कुछ राजेश रजक ही तय करता है. यानि टेंडर मैनेजमेंट के इस खेल का मास्टर माइंड राजेश रजक है. बताया जाता है कि राजेश रजक ने डीपीआर को रिवाइज कर करोड़ों का खेल किया है. इस हालत में जब ईडी संजीव लाल को अपने लपेटे में ले चुकी है, आज नहीं तो कल जांच का यह दायरा राजेश रजक तक पहुंचने की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता.
कांग्रेस की बढ़ती मुसीबत
ध्य़ान रहे कि इस पूरे खेल में गर्दन सिर्फ कांग्रेस की फंसती नजर आ रही है. हालांकि कई बार आरोपों के घेरे में झामुमो के नेता भी रहे हैं, आज तक झामुमो से जुड़े किसी भी नेता या उसके सहयोगी के पास के कैश की बरामदगी नहीं हुई है. यह बात झामुमो नेताओं को राहत तो जरुर प्रदान कर सकती है, लेकिन बड़ा सवाल है यह है कि जिस प्रकार से जांच की तलवार मंत्री आलमगीर आलम और कांग्रेस अध्यक्ष राजेश ठाकुर की ओर बढ़ती नजर आ रही है.
झामुमो अपने को कब तक बेदाग होने का दावा ठोंकती रहेगी. खास कर तब जब कि सुप्रियो भट्टाचार्य पर भी तबादले में भूमिका बतायी जा रही है. दावा किया जा रहा है कि जल्द ही ईडी सुप्रियो को भी समन जारी करने वाली है. इस हालत में इस पूरे चुनावी संघर्ष के दौरान महागठबंधन का समय सिर्फ अपनी सफाई देने में ही गुजर जाये तो अचरज की बात नहीं होगी.
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