ट्रैकमेंटेनर्स की दर्दनाक कहानी: काला पानी की सजा या नौकरी?


चाईबासा/संतोष वर्मा: भारतीय रेलवे में इंजीनियरिंग विभाग में कार्यरत ट्रैकमेंटेनर चंद्र मोहम्मद ने अपनी कष्टमयी कहानी साझा की है। उन्होंने बताया कि उनका नाम पहले गैंगमैन, बारहमासी से ट्रैकमैन और वर्तमान में ट्रैकमेंटेनर पड़ा है, लेकिन उनकी ड्यूटी और कार्य वही है। 

कठिन कार्य और कठोर परिस्थितियां

ट्रैकमेंटेनर्स को प्रतिदिन 20 से 25 किलोग्राम वजन के साथ 10 से 12 घंटे काम करना पड़ता है, चाहे चिलचिलाती धूप/गर्मी हो या मूसलाधार बारिश या कपकपाती ठंड। वे पटरियों के बीच फैली गंदगी को हाथों से हटाते और पटरियों की मरम्मत करते हैं। साथ में वजनदार लोहे का सब्बल लेकर 10 से 15 किलोमीटर रोज़ चलना पड़ता है।

अपमान और कमी का सामना

ट्रैकमेंटेनर्स को ड्यूटी के दौरान अधिकारियों की गाली सुनने और अपमानजनक व्यवहार सहने पड़ते हैं। कभी-कभी दूसरे विभाग के लोग भी उन्हें अपमानित करते हैं। विरोध करने पर उन्हें सस्पेंड, चार्जशीट और ट्रांसफर की धमकी दी जाती है। 

प्रमोशन की कमी

ट्रैकमेंटेनर का कोई प्रमोशन नहीं है। वे जिंदगी भर पटरी पर ही दौड़ते रहते हैं। जबकि ग्रुप डी के अन्य कर्मचारी, जो अन्य विभागों में हैं, 3 से 4 साल में LDCE की सुविधा मिलने से स्टेशन मास्टर, गुड्स गार्ड, टीटी, टीसी और क्लर्क जैसे पदों पर पहुंच जाते हैं। लेकिन इंजीनियरिंग विभाग में पहुंचते ही ट्रैकमेंटेनर्स को अनपढ़ मान लिया जाता है। उन्हें LDCE परीक्षा में शामिल होने नहीं दिया जाता।

चंद्र मोहम्मद का कहना है कि यह नौकरी नहीं, काला पानी की सजा है। उन्होंने रेलवे प्रशासन से उम्मीद जताई है कि वे इस मुद्दे पर ध्यान दें और ट्रैकमेंटेनर्स की समस्याओं का समाधान करें।

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