आदिवासी स्वशासन एकता मंच ने दी सेरेंगसिया घाटी के शहीदों को श्रद्धांजलि


चाईबासा: आदिवासी स्वशासन एकता मंच की ओर से रविवार को सेरेंगसिया शहीद दिवस पर शहीदों को श्रद्धांजलि दी गयी। मंच के पदाधिकारियों ने शहीदों के स्मारकों पर शीश नवाकर श्रद्धासुमन अर्पित किया। इस मौके पर मंच के अध्यक्ष कुसुम केराई ने कहा कि 1837 को इसी सेरेंगसिया घाटी में आदिवासी लड़ाकों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत का बिगुल बजाया था।

इसी घाटी में हुए ऐतिहासिक युद्ध में आदिवासी लड़ाकों ने पारंपरिक हथियारों से अंग्रेजी सेना को हराया था। इस युद्ध में आदिवासी लड़ाकों ने जो पराक्रम दिखाया था, वह ऐतिहासिक था। इसी कोल विद्रोह के बाद अंग्रेजी हुकूमत ने हमें अपनी जमीन की रक्षा के लिये विल्किंसन रूल दिये। यह कानून आज भी कोल्हान में लागू है। इसलिये पोटो हो समेत सेरेंगसिया घाटी के तमाम शहीदों के प्रति हमें कृतज्ञ रहना चाहिये।

क्योंकि उनके और उनके जैसे अन्य शहीदों के कारण ही आज हम कोल्हान में पूर्वजों की छोड़ी जमीन पर आबाद हैं। इसी कोल विद्रोह के बाद आदिवासी समाज की पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था को अंग्रेजों ने मान्यता दी और अधिकार मिले। मुंडा तथा मानकी को छोटे अपराधों में इंसाफ करने का कानुनी अधिकार मिला। अंग्रेजों ने हुकूकनामा भी दिया, जिसमें विल्किंसन रूल के तहत शासन करने के नियम लिखे हैं।

इस दौरान डोबरो बुड़ीउली, ब्रजकिशोर देवगम, पूर्णचंद्र बिरुवा, माहती पुरती, मुरारी आल्डा, सूबेदार बिरुवा, विश्वनाथ तामसोय आदि मौजूद थे।

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