लवों पर संविधान, सीने में साज़िशें – ये कैसी रैली, ये किसकी बातें

लवों पर संविधान, सीने में साज़िशें – ये कैसी रैली, ये किसकी बातें?

झारखंड की जनता पूछ रही है – संविधान को छलने वाले अब बचाने चले हैं?


संतोष वर्मा

Chaibasaःकांग्रेस द्वारा आयोजित तथाकथित “संविधान बचाओ” रैली महज एक दिखावा है – असलियत में यह वही दल है जो सत्ता में आते ही संविधान की आत्मा को कुचलने में लग जाता है। महागठबंधन की सरकार ने झारखंड की जनता के संवैधानिक अधिकारों का सुनियोजित उल्लंघन किया है – और इसकी सबसे बड़ी कीमत चुका रहा है आम नागरिक।

यह कैसी संविधान-भक्ति है – जहां:

आदिवासियों की अस्मिता पर धर्मांतरण के ज़रिए खुला हमला हो रहा है, उनकी पहचान मिटाने की साजिश चल रही है।

बेरोजगारी चरम पर है – युवा पलायन को मजबूर हैं क्योंकि राज्य में न नौकरी है, न उद्योग, न भविष्य।

भ्रष्टाचार बेलगाम है – CGL परीक्षा हो, ट्रांसफर-पोस्टिंग या सरकारी ठेके, हर जगह दलाली हावी है।

सीमावर्ती क्षेत्रों में अवैध घुसपैठ से जनसंख्या का असंतुलन बढ़ रहा है, सुरक्षा खतरे में है।

ईचा-खरकाई डैम को लेकर जनता से किया गया वादा तोड़ा गया – विस्थापितों की आवाज़ को दबाया जा रहा है।

बंद खदानें और निष्क्रिय पड़ी केंद्रीय योजनाएं रोजगार के संवैधानिक अधिकार को खत्म कर रही हैं।

पर्यटन के नाम पर स्थानीय संस्कृति पर प्रहार हो रहा है, ग्राम्य जीवन और पंचायती अधिकारों को नजरअंदाज किया जा रहा है।

पांचवीं अनुसूची का उल्लंघन कर ग्रामीण क्षेत्रों में खुलेआम शराब की बिक्री से आदिवासी युवा नशे में झोंके जा रहे हैं।

सरना स्थलों और मरांग बुरु जैसे धार्मिक स्थलों पर हमलों पर सरकार की चुप्पी क्या दर्शाती है?

स्थानीय नीति लागू नहीं हो रही – झारखंडी युवाओं का भविष्य अंधेरे में धकेला जा रहा है।

यह सब क्या संविधान की रक्षा है? या संविधान पर संगठित आक्रमण?

कांग्रेस और उसकी सहयोगी सरकार के पाखंड को झारखंड की जनता पहचान चुकी है। घोटालों, घुसपैठ, नशे और अपसंस्कृति की सरकार अब संविधान बचाने की बात कर रही है – यह विडंबना नहीं, धोखा है।

भाजपा स्पष्ट करती है:सं

विधान की रक्षा अब सत्ता से नहीं – जनता के वोट से होगी।

जो संविधान को छलते हैं, उन्हें झारखंड की जनता कभी माफ़ नहीं करेगी। भारतीय जनता पार्टी जिला कमेटी की ओर से जिला मीडिया प्रभारी ने पार्टी का पक्ष रखते हुए कहा उक्त बातें प्रवक्ता जितेंद्र ओझा नें कही।



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