कोल्हान विश्वविद्यालय में ओत गुरु कोल लको बोदरा जयंती सह साहित्यसंगोष्ठी धूमधाम से सम्पन्न

कोल्हान विश्वविद्यालय में ओत गुरु कोल लको बोदरा जयंती सह साहित्यसंगोष्ठी धूमधाम से सम्पन्न

santosh verma

Chaibasa :जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग, कोल्हान विश्वविद्यालय चाईबासा में  परंपरानुसार 106वाँ ओत गुरु कोल लको बोदरा जयंती सह साहित्य संगोष्ठी बड़े ही हर्षोल्लास एवं गरिमामय माहौल में आयोजित किया गया।कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथियों के स्वागत एवं दीप प्रज्वलन से हुआ।मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित विश्वविद्यालय के परीक्षा नियंत्रक डाॅ. रिंकी दोराई ने अपने संबोधन में कहा कि "लको बोदरा जी के विचार आज भी समाज के लिए प्रासंगिक हैं। समाज में यदि कहीं त्रुटियाँ हैं, तो उन्हें सुधारने की जिम्मेदारी हम सबकी है। बोदरा जी द्वारा प्रतिपादित वारङ चिति लिपि हो समाज को एक सूत्र में बाँधने का कार्य करती है।"विशिष्ट अतिथि डाॅ. मीनाक्षी मुण्डा, मानवशास्त्र विभाग ने बोदरा जी के योगदान को याद करते हुए कहा कि "उन्होंने लोकगीत और लोकसाहित्य को शिष्ट साहित्य का रूप दिया।



 आज हम सबकी जिम्मेदारी है कि उनके कार्य को आगे बढ़ाएँ और भावी पीढ़ी के लिए दस्तावेजीकरण करें।"क्रीड़ा विभाग के सेकोर गुरु सह कलाकार श्री सतीश सामड् ने सेकोर एवं बनम पर जानकारी साझा की तथा एक मधुर गीत प्रस्तुत कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने युवाओं से अपील की कि वे नशे से दूर रहें और अपनी ऊर्जा को समाज एवं संस्कृति के विकास में लगाएँ।विभागाध्यक्ष डाॅ. सुनील मुर्मु ने कहा कि "लको बोदरा केवल साहित्यकार ही नहीं, बल्कि एक महान दार्शनिक भी थे। उन्होंने वारङ चिति लिपि एवं हो साहित्य को गहन अध्ययन कर समाज के समक्ष स्थापित किया। अब आवश्यकता है कि छात्र-छात्राएँ भी उसी ऊर्जा और समर्पण से कार्य करें।"प्रभारी, हो विभाग डाॅ. बसंत चाकी ने बोदरा जी की संक्षिप्त जीवनी प्रस्तुत की और कहा कि "बोदरा जी ने हो समाज को भारतीय साहित्य से जोड़ा और विज्ञान की दृष्टि से भी उसे मजबूत किया।"मानविकी संकायाध्यक्ष डाॅ. तपन कुमार खाँड़ा ने अपने संबोधन में कहा कि वारङ चिति लिपि पर अभी व्यापक शोध की आवश्यकता है। उन्होंने बोदरा जी को कठिन परिश्रम एवं समर्पण का प्रतीक बताया।कार्यक्रम में टीआरएल एवं हो विभाग के छात्र-छात्राओं ने सांस्कृतिक प्रस्तुतियों से समां बाँधा। आयोजन को सफल बनाने में टीए गोनो आल्डा, रामदेव बोयपाई एवं दीकु हांसदा की विशेष भूमिका रही।इस अवसर पर महिला महाविद्यालय चाईबासा हो विभाग के चन्द्रमोहन हेम्ब्रोम, निशोन हेम्ब्रम, सुभाष चन्द्र महतो सहित बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएँ एवं समाज के बुद्धिजीवी उपस्थित रहे।कार्यक्रम का सफल संचालन एवं आयोजन जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग,कोल्हान विश्वविद्यालय,चाईबासा द्वारा किया गया।

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