चाईबासा: करमा पूजा आदिवासियों विशेषकर उरांव समुदाय का एक महान धार्मिक त्योहार है। वैसे तो अन्य समुदाय भी यथा कुड़मी, भूमिज, खड़िया, कोरबा, कुरमाली आदि भी इस धार्मिक त्योहार को मनाते हैं। यह कर्मा त्यौहार भादो महीने के शुक्ल पक्ष के एकादशी के दिन सर्वत्र काफी धूमधाम से मनाया जाता है। आदिवासी उरांव समुदाय आरंभ से ही कृषि को मुख्य जीवन यापन का साधन मानते आए हैं। इस भादो महीने तक खेतों में धान की नई फसल तैयार हो जाती है। फसल की इस नावागमन का स्वागत करते हुए भी हम नाचते-गाते हुए करम त्यौहार की खुशियां मनाते है। इस करम त्यौहार में बहने अपने भाई की दीर्घायु एवं सुख-समृद्धि की कामना करती है।
परंपरा है कि भादो एकादशी के 5 दिन पूर्व कुंवारी लड़कियां नदी से टोकरी में बालू लाकर पुजारी पहन के घर तड़के ही जावा (चना, मकई, जौ, गेहूं, उड़द) 5 दिनों तक रोपते हैं पुराने नियम से उसे जावा को धूवन-धूप देकर नाच-गाकर सेवा किया जाता है। इन पांच दिनों में घर भर के साथ-साथ लड़कियों का भी स्वच्छता पर विशेष ख्याल रखा जाता है। भादो एकादशी के दिन पांच, सात कुंवारे लड़के उपवास रखकर करम डाल काटने जाते है। जिस पेड़ से यह डाल काटा जाता है उससे पहले क्षमायाचना की जाती है, (क्योंकि हम प्रकृति के पुजारी है) तत्पश्चात धर्मेश (ईश्वर) की आराधना कर विधिवत पूजा अनुष्ठान कर तीन डालियों को काटा जाता है।
डालियो को पीछे से पहुंची कुंवारी लड़कियों के हाथों में सौंपा जाता है, इसके बाद पूरा एकत्रित भीड़ उस करम देव (डाल) को रीझ-ढंग से नाचते-गाते हुए पूजा स्थल अखाड़े तक लाते हैं, और उसे गडकर स्थापित किया जाता है, इर्द-गिर्द जावा की टोकरियों (जिसमें अब तक छोटे-छोटे पौधे अंकुरित हो गए होते हैं) को रखकर पूरे विधि विधान से पूजा अर्चना करते हैं, और पूरी रात नाच गाकर खुशियां मनाते हैं। दूसरे दिन फिर उसी हर्षोल्लास के साथ नियम करते हुए नाचते-गाते हुए करम राजा (करम डाल) को विसर्जन किया जाता है। लोक कथा में किवंदती है कि करम डाल को विधिवत्त पूजा अर्चना करने से गांव घरों में खुशहाली होती है, तथा सुख-समृद्धि आती है।
लोक कथा में यह भी वर्णन है कि कर्मा-धर्मा दो भाई हुआ करते थे, दोनों भाइयों में बहुत ही प्रेम था किंतु दोनों के स्वभाव कुछ अलग था। धर्मा जहां धार्मिक प्रवृत्ति का था वहीं कर्मा जिद्दी एवं गुस्सैल प्रवृति का था। एक बार विदेशी दुश्मनों ने कर्मा-धर्मा के राज्य में आक्रमण कर दिए,जिससे राज्य बदहाली के कगार में पहुंच गया। ऐसे में कर्मा अपने बिखरे हुए लोगों को एकत्रित कर युद्ध की तैयारी आरंभ कर दी किंतु धर्मा अपने राज्य के लोगों के साथ वहीं खेती किसानी करते हुए धर्मेश की आराधना करते हुए सुख-समृद्धि की कामना करता रहा। कालांतर में बहुत सारे घटनाक्रमों के पश्चात जब कर्मा दुश्मनों से युद्ध जीतकर धन दौलत के परिपूर्ण होकर अपने राज्य लौटता है तो वह दिन यही भादो एकादशी का शुक्ल पक्ष का ही दिन था।
उन्हें कर्मा के आने की सूचना मिलती है किंतु उस वक्त वह करम डाल (करम राजी) की पूजा में लीन था। वह अपने भाई कर्मा की आवमगत नहीं कर पाया। इससे क्रोधित होकर कर्मा ने करम डाल को उखाड़ कर फेंक देता है, जो सात समंदर पार एक टापू में गिरता है। पूजा के इस व्यवधान से धर्मा बहुत दुखी होता है और अपने भाई धर्मा को क्षमा याचना करने को कहता है, किंतु कर्मा अपने विजय के नशे में चूर इसे नहीं मानता है, फलस्वरुप कालांतर में कर्मा के राज्य में घोर विपत्ति और बदहाली हो जाती है। तत्पश्चात भाई धर्मा को समझाने पर उन्हें अपनी गलतियों का एहसास हो जाता है, और फिर दोनों उस फेके हुए करम डाल को खोजने निकल पड़ते हैं। बहुत सारे घटनाक्रमों के बाद वह उस करम डाल को लेकर पुन: अपने राज्य में लौटते हैं।
संजोगवश वह दिन भी भादो एकादशी का ही दिन था। दोनों भाई राज्य के लोगों के साथ मिलकर करम डाल को घर के आंगन में गडकर पूरे विधि-विधान के साथ पूजा अर्चना करते हैं। नाच-गाकर करम गोसाई की आराधना करते हैं। धीरे-धीरे उनके राज्य में सर्वत्र खुशी लौट कर आ जाती है, और सभी राज्य वासी सुखी पूर्वक अपने जीवन-यापन करने लग जाते हैं। प्रकृति पर्व करमा त्योहार का संदेश यही है कि कर्म ही धर्म है और धर्म ही कर्म है। आध्यात्मिक का एवं धार्मिक मार्ग को अपनाते हुए अच्छे कर्म से जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त की जा सकती है। प्रकृति की पूजा एवं उनकी रक्षा करना हमारा परम कर्तव्य है।