पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा को हराने वाले प्रत्याशी सोनाराम सिंकु की चर्चा दिल्ली तक हो रही है

आदिवासी समाज की एक जुटता से सोनाराम सिंकु की जीत हुई पक्की

गीता कोड़ा ने लोकसभा चुनाव में बीस हजार अन्तर मतों से पिछड़ने को कम करने में सफल रही

अल्पसंख्यक समुदाय का वोट बोबोंगा को नहीं मिलने से सोनाराम सिंकु दोबारा विधायक बनने में सफल रहे

भाजपा का नकारात्मक प्रचार प्रसार से आदिवासी समुदाय नाराज़ दिखे, वहीं मुस्लिम समाज एक जुट हुए

ओड़ीसा राज्य के मुख्यमंत्री मोहन मांझी भी गीता कोड़ा को जीत नहीं दिला सके

सोनाराम सिंकु ने अपनी शांत मिजाज से अपने ऊपर लग रहे सभी आरोप को खारिज करते हुए जितने के मिशन को सफल बनाया

असम राज्य के मुख्यमंत्री हिमांता विश्व शर्मा को झारखंड के आदिवासी समाज ने सीधे तौर पर नकार दिया

सोना राम सिंकु की जीत हेमंत सोरेन और कल्पना सोरेन की मेहनत का नतीजा है, जिसे जनता ने आशीर्वाद दिया है

जनता ने सोनाराम सिंकु को सिर्फ विधायक नहीं बनाया है, भावी मंत्री भी बनाया है, प्रचंड बहुमत पर मैयां सम्मान योजन का असर दिख रहा है


चाईबासा/संतोष वर्मा: जगन्नाथपुर विधानसभा सीट से गीता कोड़ा को हराने वाले सेनाराम सिंकु की चर्चा दिल्ली तक हो रही है, चर्चा होने वाली बात भी है, क्यूंकि पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा को हराया है सोनाराम सिंकु ने। इस विधानसभा चुनाव में इस सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी मंगल सिंह बोबोंगा पर सबकी निगाहें टिकी हुई थीं, गीता कोड़ा के साथ साथ सोनाराम सिंकु की भी जीत और हार का मापदंड मंगल सिंह बोबोंगा को ही माना जा रहा था। लेकिन हेमंत सोरेन और कल्पना सोरेन की सभा होने से गीता कोड़ा की जीत पर ग्रहण लगने लगा था, और वही हुआ भी।


इस चुनाव में भाजपा के सांप्रदायिक मुद्दे और सोशल मीडिया पर तनाव फैलाने की कोशिश के साथ साथ नीलकंठ मन्दिर में शिव लिंग तोड़े जाने को लेकर बीजेपी की रवैया से भाजपा को खुद का नुकसान होते दिखा। भाजपा के द्वारा हिंदू मुस्लिम, कभी मुस्लिम आदिवासी का मुद्दा उठा कर राजनितिक रंग से रंगने के भ्रषक प्रयास के बावजूद भाजपा को लाभ नहीं मिला। जिस तरह लोकसभा में गीता कोड़ा अपने गढ़ जगन्नाथपुर में बीस हजार के आस पास से पिछड़ गई थी, आज इस चुनाव में सुधार हुआ है, हार और जीत का अन्तर को कम कर पाने में गीता कोड़ा सफल रही है।

जिस तरह इस चुनाव में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सोनाराम सिंकु को बदनाम किया गया, आरोप भी लगाया गया, अपमानित करने में विरोधी लोग पीछे नहीं रहे, लेकिन सोनाराम सिंकु ने अपनी शांत मिजाज से सब को सहने का काम किए, और अपने जीतने का मिशन को सफल बनाने में लगे रहे। इस चुनाव में सोना राम सिंकु ने दो प्रबंधन बनाया, एक खुद देखने और करने का काम कर रहे थे, वहीं दूसरा प्रबंधन उनके खास के हाथों में था, जो डैमेज कंट्रोल पर काम कर रहे थे।


सोना राम सिंकु का एक लम्बा अनुभव कोड़ा दंपति के साथ रहने के कारण कोड़ा के बहुत सारे गतिविधि को समझते और जानते हैं, इसका लाभ सोनाराम सिंकु ने उठाया है। आदिवासी समाज के लोग बढ़ चढ़ कर कांग्रेस प्रत्याशी को वोट किया है, मुस्लिम और ईसाई भी एक जुट होकर सोनाराम सिंकु को वोट दिए हैं।


गीता कोड़ा के जिताने का बेड़ा उठाने वाले उड़ीसा राज्य के मुख्यमंत्री मोहन मांझी का जलवा और जादू कहीं भी देखने को नहीं मिला, माइंस माफियाओं और ट्रांसपोर्टरों की फौज का असर भी देखने को नहीं मिला, यूं कहा जा सकता है कि धन बल पर जन बल भारी पड़ता दिखा।

मतदान के एक दिन पहले जैंतगढ़ और नौवामुंडी में दो माइंस ट्रांसपोर्टर सोनाराम सिंकु को हराने के लिए करोड़ों रुपए बांट रहे हैं, जिससे कांग्रेस प्रत्याशी पर असर पड़ता दिखा, लेकिन जनता ने रुपए बांटने वालों को करारा जवाब देने का काम किए, सोनाराम सिंकु को जीता कर यह साबित कर दिया है कि धन बल से जन बल को नहीं खरीदा जा सकता है।

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