मिलिये किसान बेंजामिन पुरती से जिसने पहाड़ काटकर बाना डाला जिले का सबसे बड़ा फलों का बागान

एक किलोमीटर के दायरे में फैले 15 एकड़ जमीन पर उगा दिए एक हजार से अधिक फलदार पेड़-पौधे

बागवानी से दो बसें व तीन टेंपू का मालिक भी बना, तो रांची में बनाया जमीन खरीदकर घर


चाईबासा/संतोष वर्मा: जिस इलाके के जर्रे-जर्रे में नक्सलियों का खौफ सिर चढ़कर बोलता है, उसी इलाके में कृषि के क्षेत्र में अदभुत कार्य कर एक किसान दूसरे किसानों के लिये प्रेरणा बनकर उभरे हैं। उस संघर्षशील किसान का नाम है बेंजामिन पुरती। जिला मुख्यालय चाईबासा से करीब अस्सी किमी दूर गोईलकेरा प्रखंड के गुलरूआं गांव, जो नक्सल प्रभावित है, में वो रहते हैं। और यहीं नक्सलियों के खौफ के साये में उन्होंने मेहनत तथा संघर्ष की नयी गाथा लिखी है। उन्होंने बागवानी के क्षेत्र में न केवल असाधारण काम करके दिखाया है बल्कि आर्थिक उन्नति में भी मील के कई पत्थर गाड़े हैं। कृषि में असाधारण कार्य के लिये उनको कई बार सरकार की ओर से सम्मानित भी किया गया है। मीडिया में भी कई दफे सुर्खियां बटोर चुके हैं। फिर भी उनके पाँंव जमीन से आज भी जुड़े हैं।उनकी आयु अभी 78 वर्ष है। स्वस्थ हैं, बात भी करते हैं। 

एक किलोमीटर के दायरे में फैला है फलों का बागान

बेंजामिन पुरती ने गुलरूआं में निजी जमीन पर जिले का सबसे बड़ा फलों का बागान बनाया हुआ है जिसमें एक हजार से अधिक फलदार कलमी पेड़-पौधे लगे हैं। इसमें मुख्य रूप से विभिन्न प्रजाति के आम, संतरा, अनानस, लीची, अमरूद, नींबू, गन्ना (ईख), केला, पपीता आदि शामिल हैं। बेंजामिन ने बताया कि यह बागान करीब 15 एकड़ में फैला हुआ है और यह एक किलोमीटर के दायरे को कवर करता है। उन्होंने बताया कि इतने विशाल एरिया में पौधों तक पानी पहुंचाने के लिये आधुनिक सिंचाई तकनीक टपक विधि का वे उपयोग करते हैं। इसके लिये पूरे बागान में उन्होंने पाइपलाइन की जाल बिछा रखी है। सिंचाई लिये डीप बोरिंग भी बना है। इससे पानी निकालने के लिये बिजली की भी व्यवस्था है।


वहीं ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत के रूप में सोलर एनर्जी सिस्टम भी स्थापित है। ताकि बागान की जलापूर्ति निर्बाध बनी रहे। इतना ही नहीं, पौधों को साफ पानी ही मिले इसके लिये पानी छानने की मशीनें भी इंस्टॉल्ड हैं वहां। उन्होंने बताया कि उसकी बागवानी की खबर जब सरकारी अधिकारियों तक पहुंची, तो उन्होंने सुविधाएं देकर उनको और प्रोत्साहित किया। इससे बागान और बेहतर हुआ। बेंजामिन पुरती ने बताया कि वे बागवानी के लिये आधुनिक वैज्ञानिक पद्धति उपयोग करते हैं। उन्होंने बागवानी की बाकायदे ट्रेनिंग भी ले रखी है। इस सिलसिले में इजरायल का भी दौरा किया था। जहां उनको दुनिया की आधुनिकतम तकनीक से खेती करने के गुर सीखे थे।

20 लाख है सलाना आमदनी, दो बसें और तीन टेंपो भी है अब

बेंजामिन पुरती ने बताया कि इस विशालकाय बागान से उत्पादित फलों से उनको सलाना औसतन बीस लाख रूपये की आमदनी होती है। कभी इससे ज्यादा भी होता है। उन्होंने बताया कि बागवानी की आमदनी से दो यात्री बसें और तीन टेंपो भी खरीद रखी है। इनसे अलग आय होती है। उन्होंने बताया कि लीची से उनको सबसे अधिक आमदनी होती है। 400 से अधिक लीची पेड़ हैं। जबकि आम के 500 पेड़ हैं। वो भी अलग अलग उन्नत नस्लों के।


बेंजामिन ने बताया कि लीची स्थानीय गोईलकेला, चक्रधरपुर आदि बाजारों में ही खप जाता है। ओड़िशा के राऊरकेला भी सप्लाई होता है। जबकि आम की बिक्री घर से ही थोक में हो जाती है। व्यापारी ट्रक व टेंपो आदि लेकर आते हैं। रांची भी जाता है ये आम। उन्होंने बताया कि अनानस भी लोकल मार्केट में ही बिक जाता है। संतरा की मांग तो हमेशा ही रहती है। बाकी फल भी लोकल मार्केट में बिक जाते हैं। जो जानते हैं वे घर आकर भी खरीदते हैं। यह बागान वैसे तो पच्चीस वर्ष पुराना है। लेकिन आज ये अपने शिखर पर है। पहले ये छोटा था, अब पूरे 15 एकड़ में फैला है। 

रांची में जमीन खरीदी, फिर घर बनाया

78 साल के हो चुके बेंजामिन पुरती ने न केवल बागवानी, बल्कि पारिवारिक जिम्मेदारी के निर्वहन में भी लोगों को राह दिखायी है। उन्होंने बागवानी की कमाई से पांच बेटे और एक बेटी को रांची में पढ़वाया। इसके लिये उन्होंने रांची में जमीन खरीदी और घर भी बनवाया। बच्चों को वहां रखा। वहीं रहकर कई बच्चे संत जेवियर्स कॉलेज रांची से ग्रेजुएट हुए। फिर कुछ सरकारी नौकरी में गये। अब सबों की शादी हो चुकी है। अब यह घर बेंजामिन पुरती के पोते-पोतियों से गुलजार है।

पहाड़ काटकर पथरीली मिट्टी हटाई फिर वहां बाहरी उपजाऊ मिट्टी डाली 

पेशे से किसान और मिडिल स्कूल तक पढ़वाले बेंजामिन पुरती ने जिस जुनून व जज्बे से इस बागान को बनाया है वह प्रशंसनीय है। उनका बागान का अधिकत्तर हिस्सा पहाड़ की ढलान पर है। ऊपर से मिट्टी पथरीली थी। ऐसे जमीन पर बागवानी संभव नहीं थी। मिट्टी बदलना जरूरी था। इसलिये उन्होंने जमीन से पथरीली हटाकर उपजाऊ मिट्टी डालने का असाधारण काम करने की ठानी। वह भी बिना किसी मशीनी मदद के।

उन्होंने साधारण कृषि औजार गैंता, कुदाल, बेलचा का उपयोग किया। पहले पहाड़ी ढलान से कई टन पथरीली मिट्टी हटायी। फिर उसमें बाहर से लायी गयी उपजाऊ मिट्टी डाली। उपजाऊ तब जाकर बना। फिर एक हजार से अधिक पेड़ उगा डाले उसमें। बेंजामिन ने बताया कि आज से ढाई दशक पहले मशीनों द्वारा मिट्टी हटाने की सुविधा नहीं थी। वैसे भी यह जंगली पहाड़ी इलाका है। इसलिये शारीरिक श्रम से ही इस असंभव कार्य को उन्होंने अंजाम दिया। इस काम में छह माह का समय लगा। फिर बागवानी शुरू हुई।

आज ढाई दशक बाद यह बागान अपनी समृद्धि की शिखर पर है। इसके अलावा वे छोटे स्तर पर सुअर (शूकर), बकरी, मुर्गा-बत्तख पालन भी वह करते है। इससे भी उनको लाखों की सलाना आमदनी होती है। बेंजामिन ने बताया कि बागान की देखरेख में छोटे भाई समेत सबों का सहयोग मिलता है। घर के लोग ही बागान में श्रम भी करते हैं। बाकी लोग रांची में रहते हैं।

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