सरायकेला/दीपक कुमार दारोघा: सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करते ही लोग पहुंचे नदी और स्नान कर सूर्य को जलार्पण के साथ मनाया मकर संक्रांति जहां चारों ओर भक्ति व उल्लास का माहौल रहा।
बताया जाता है कि सूर्य इसी दिन से उत्तरायण हो जाते हैं। सूर्य का उत्तरायण होने से दिन बड़ा और सर्दी खत्म का संकेत मात्र से जनजीवन नई ऊर्जा के साथ नई फसल आगमन की खुशी में इस पर्व को मानते हैं।
इसका धार्मिक महत्व भी इसीलिए है कि महाभारत के भीष्म ने सूर्य के उत्तरायण यानी मकर संक्रांति के दिन प्राण त्यागा था। यह भी बताया जाता है कि भागीरथी ने इसी दिन माता गंगा को धरती में लाया था। गंगा स्नान, सूर्य को जलार्पण की इसी दिन खास महत्व रही है।
पश्चिम बंगाल में "गंगासागर मेला" हो या फिर प्रयागराज में "कुंभ मेला" चारों ओर भक्ति उल्लास का माहौल है। तमिलनाडु में पोंगल का उल्लास है। पंजाब में लोहड़ी का उमंग है। झारखंड में भी मकर संक्रांति का उल्लास रहा है। तील का लड्डू, गुढ़ पीठा पर्व का मुख्य व्यंजन रहा। अब लोग विभिन्न क्षेत्रों में लगने वाले मेला का आनंद उठाने में मशगूल है।
अगर सरायकेला खरसांवा जिला की बात करें तो पाएंगे कि मकर संक्रांति के बाद पहली शनिवार को सरायकेला खरकाई नदी गर्भ में केवल महिलाओं के लिए मेला लगती है। यह परंपरा राजा-रजवाड़ समय से शुरू हुई थी। जो अब भी देखने को मिलता है। इधर खरसांवा में आकर्षिणी मेला, राजनगर में बोंगबोंगा मेला, चांडिल में जायदा मेला की ओर लोग मशगूल हैं।