विभागीय शिथिलता और अनदेखी का फायदा उठाकर बालू माफिया इस धंधे को बेखौफ कर रहे हैं
निकटतम थाना प्रभारी का मिल रहा संरक्षण बदले में प्रति ट्रैक्टर मालिकों से महीना इंट्री के नाम पर तीन हजार वसूली करते है प्रभारी
चाईबासा/संतोष वर्मा: जिला में कुल 11 बालू घाट हैं। 2015 के बाद से इन बालू घाटों की बंदोबस्ती नहीं हुई है। इससे सरकार को करोड़ों रुपये के राजस्व का नुकसान हो रहा है। पिछले बार हुई बंदोबस्ती से सरकार के खाते में जिला से 4 करोड़ से अधिक राजस्व जमा हुआ था। बालू घाटों की बंदोबस्ती नहीं होने की वजह से जिला के कई जिंदा नदी जैसा कि तोरलो, खरकई नदी के घाटों में दिन-रात धड़ल्ले से बालू का अवैध उत्खनन, परिचालन और बिक्री की जा रही है।
बालू माफियाओं के लिए चाईबासा सदर में पड़ने वाले कई नदी किनारे बसे हुए गांव शामिल हैं। तांतनगर अंतर्गत इलीगाड़ा, तोरलो नदी और राजनगर अंतर्गत बोंदोडीह, सरजोमडीह, हेरमा बालू घाट से खुले आम बालू की चोरी हो रही है। सबकुछ जानने के बावजूद अंचल अधिकारी और जिला खनन विभाग व पुलिस विभाग मौन साधे हुए है। इन इलाकों में पढ़ने वाले पुलिस थाना के थानेदार महीना के लाखों अवैध पैसा वसूली करते हैं। लोगों का कहना है कि जब तक बालू घाटों की सरकार सही तरीके से बंदोबस्ती नहीं कराती तब तक बालू की चोरी रोकी नहीं जा सकती। जब कभी बालू लदे ट्रैक्टर पुलिस या खनन विभाग पकड़ता है तो कई बार विधायकों के फोन पैरवी के लिए आ जाते हैं। ऐसे में विभाग के पास भी ज्यादा कुछ करने की जगह नहीं बनती।
विभागीय कमजोरी कहा जाए या फिर संरक्षण बेखौफ बालू चोर इसका फायदा उठाकर मोटा उगाई कर रहा है। एन्टी करप्शन ऑफ इंडिया के झारखंड प्रदेश अध्यक्ष रामहरि गोप ने ट्विट कर जिला उपायुक्त से तोरलो नदी चिटिमिटि टोंटो सासे शासनपत, खरकाई नदी स्थित तांतनगर के ईलीगाड़ गैरासीनी राजनगर के हेरमा, बोंदोडीह, सरजोमडीह आदि गांव को लेकर संज्ञान में ले कर उचित कार्यवाही की मांग की है। एक ओर राज्य सरकार करोड़ों रुपए खर्च कर पर्यावरण संरक्षण के लिए कई तरह का योजना शुरू कर जागरुकता अभियान चला रहा है।
तो दूसरी ओर प्रशासन के उदासीनता के वजह से जिंदा नदी मरने के कगार पे आ गया है।जिला की छोटी-बड़ी सभी नदियां बालू के उत्खनन के कारण दम तोड़ रही हैं। बालू के लिए छोटी व बड़ी सभी तरह की नदियों को मौत के मुहाने तक पहुंचाया जा रहा है। नदियों से खनन करने का नियम तो बना है, लेकिन इसका कोई पालन नहीं करते हैं, जिन्हें जब मौका मिला, नदियों का सीना चीर कर बालू का खनन करना शुरु कर देते हैं। इसका नतीजा यह हो रहा है कि नदियां मौत के करीब पहुंच रही है। जिला में दर्जनों छोटी-बड़ी नदी और नाला ऐसे थे, जो साल भर बहा करती थी, लेकिन बालू खनन के कारण 8 माह के बाद ही नदियों को नाला और नाला को चट्टानी मैदान होते आसानी से देख सकते हैं।
खनन विभाग का नियम है कि जिस बालू घाट को नीलामी किया जाता है, वहां बालू के अनुसार तीन फीट छोड़ कर खनन किया जाता है, लेकिन बालू माफिया कहीं-कहीं बालू निकालने के लिए नदियों को 8 से 10 फीट से अधिक गहरा कर बालू का निकालते हैं। ऐसे में नदी के नीचे जो पानी का बहाव है, वह पूरी तरह खत्म हो जाता है। इस कारण नदी का पानी बरसात के बाद 3-4 माह में ही सूखने लगता है। मार्च माह का अंत होने वाला है, लेकिन चाईबासा का कुजू तांतनगर का ईलीगाड़ तोरलो नदी, रोरो व बरकुंडिया नदी का हाल देखने से काफी अफसोस होगा।
बरसात के मौसम में भी नदियां सूखी हुई है। साथ की संक्रीण भी होती जा रही है। चाईबासा की रोरो नदी के पास करणी मंदिर के आगे जिंदा नाला को अतिक्रमण कर बड़े-बड़े मकान खड़े कर दिए गए हैं जिससे भारी बरसात में नीचे इलाके में रहने वाले गरीब परिवारों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। यह तो जिला का सिर्फ चंद नमूने है, ऐसे कई नदी व नाला है जिनका अतिक्रमण कर उन्हें मौत के मुंह में पहुंचाया जा रहा या संक्रीण कर छोड़ दिया गया है। इस पर सरकार और प्रशासन सख्त नहीं होंगे तो आने वाले भविष्य दादी-नानी से सिर्फ किताबों व कहानियों में ही नदी को जान सकेंगे। साथ ही पर्यावरण पर भी विपरित प्रभाव पड़ना शुरु होगा।
नदियों के सूखने से जलीय जीवों पर भी मंडरा रहा है खतरा
नदी से कितना खनन किया गया, तय मात्रा से अधिक बालू तो नहीं निकाला गया, इन सब पर निगरानी रखने की कोई व्यवस्था नहीं है। खनन की मात्रा का आकलन करने के लिए विभाग के पास कोई मापदंड नहीं है। आमतौर पर तय सीमा से अधिक खनन किया जाता है। आमतौर पर नदियों से होने वाले अवैध और अवैज्ञानिक रेत खनन को पर्यावरण और जलीय जीवों पर खतरे के रूप में देखा जाता है। जब नदियों का जलस्तर ही खत्म हो जायेगा तो फिर जलीय जीवों के साथ साथ जैव विविधता पर गहरा संकट मंडराने लगेगी।