Chaibasa: कोल्हान यूनिवर्सिटी जनजातीय एवं क्षेत्रीय विभाग में मनाया गया ब्हा पोरोब मिलन समारोह


चाईबासा: जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग कोल्हान विश्वविद्यालय,चाईबासा में ब्ह पोरोब मिलन समारोह का आयोजन किया गया। समारोह में विभिन्न क्षेत्रों से गणमान्य लोग उपस्थित थे। डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, रांची के हो भाषा विभाग से सहायक प्राध्यापक दिलदार पुरती, कोल्हान विश्वविद्यालय के मानवशास्त्र विभाग से डॉ मीनाक्षी मुण्डा, टाटा कालेज चाईबासा से डॉ बिनीता कच्छप, डॉ रामदयाल मुण्डा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान रांची के शोध पर्यवेक्षक गुंजल इकिर मुण्डा, हो समाज महासभा के श्री नरेश देवगम मुख्य वक्ता के रूप में आमंत्रित थे।


इस अवसर पर श्री दिलदार पुरती ने ब्ह पोरोब का परिचय देते हुए कहा कि सरहुल जनजातीय शब्द नहीं है। क्योंकि इस त्योहार को हो में ब्ह, मुण्डारी में बा, संताली में बाहा, खड़िया में जाङकोर तथा कुड़ुख में खदी कहा जाता है। डॉ मीनाक्षी मुण्डा ने अपना वक्तव्य में बताया कि इस मौसम में पेड़ पौधों पर नई कोपलें और पत्ते आते हैं जिसे आदिवासी समाज में उपयोग में लाने के पूर्व प्रकृति से पूजा अर्चना कर अनुमति लेते हैं। डॉ बिनीता कच्छप ने बताया कि यह त्योहार आकाश और धरती का विवाह है। गुंजल इकिर मुंडा ने कहा कि इस त्योहार को वृहत रुप में मनाने की आवश्यकता है।


डॉ निताई चन्द्र महतो ने कहा कि ब्ह पोरोब आदिवासियों की सांस्कृतिक पहचान है। इस समारोह का अध्यक्षता विभाग के प्रभारी विभागाध्यक्ष डॉ सुनील मुर्मू कर रहे थे। उन्होंने अपनी अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि इस त्योहार को प्रत्येक जनजातीय समाज को अपने विधि-विधान के अनुरूप ही मनाना चाहिए ताकि भावी पीढ़ी को सही जानकारी मिल सके। डॉ बसंत चाकी ने अपनी स्वागत भाषण में ब्ह पोरोब के उत्पत्ति को लोककथा के रुप में बताया।

ब्ह पोरोब मिलन समारोह के सफल आयोजन हेतु छात्रों का आयोजन समिति गठन किया गया था जिसमें अध्यक्ष गणेश जोंको,उपाध्यक्ष शिवम सिजुई, कोषाध्यक्ष मुक्ता बारी, मादे कोड़ः,सचिव नरेश जेराई,संयुक्त सचिव सरिका पुरती, कविता सिंकु चयनित थे। स्वागत एवं भोजन समिति में अनजान सरदार, मानी देवगम, सुंदरी देवगम, मुनी पुरती, चितरंजन जेराई, जगन्नाथ हेस्सा एवं संगीता पुरती थी। नृत्य दल का अगुवाई हो के गोल्डमेडलिस्ट गोनो आल्डा ने किया।

मौके पर संताली विभाग के निशोन कुरमाली विभाग के सुभाष चन्द्र महतो उपस्थित थे।कार्यक्रम का समापन ब्ह दुरं ब्ह जदुर से किया गया।

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