अबुआ सरकार ईचा डैम में आदिवासी-मूलवासियों के अस्मिता,अस्तित्व और पहचान को डुबाना चाहती है-बिर सिंह बिरुली

अबुआ सरकार ईचा डैम में आदिवासी-मूलवासियों के अस्मिता,अस्तित्व और पहचान को डुबाना चाहती है-बिर सिंह बिरुली

संतोष वर्मा 

चाईबासाःराज्य सरकार आदिवासी मूलवासियों के अस्तित्व, पहचान और अस्मिता को समाप्त करघ ईचा डैम को शुरू करना चाहती है.ईचा डैम को फिर से शुरू करने के प्रस्ताव के लिए जिस सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले को आधार बनाया जा रहा है कि ईचा डैम को निरस्त करने करने से 97 हजार 256 हेक्टेयर में सिंचाई सुविधा सृजित नहीं की जा सकेगी. इसके रद्द होने से खरकई बराज से रबी की फसल की सिंचाई नहीं हो पाएगी. झारखंड सरकार सरकार के अनुसार ईचा डैम के नहरों के निर्माण पर अब तक 1397.00 करोड़ रूपये खर्च किया जा चुका है. किंतु झारखंड हाई कोर्ट में याचिकाकर्ता संतोष कुमार सोनी के अनुसार 6100 हजार करोड़ डैम निर्माण में खर्च हो चुका है. सुप्रीम कोर्ट के अनुसार अब तक 20 हजार एकड़ जमीन का अधिग्रहण पूरा नहीं हुआ है. डैम निर्माण को लेकर ग्रामीणों का विरोध जारी है.निर्माण कार्य शुरू करने हेतु 126 गांव के ग्राम सभा से सहमति प्राप्त करना अनिवार्य है. साथ ही ईचा खरकई डैम का निर्माण नहीं होने से झारखंड, बंगाल और उड़ीसा के बीच हुई त्रिपक्षीय समझौता का उल्लंघन है. पर सच्चाई यह है कि डैम निर्माण से स्थानीय ग्रामीणों, आदिवासी और मूलवासीयों को विस्थापन और विनाश के अलावा कुछ नहीं मिलने वाला. एक तरफ राज्य में शराब घोटाले का रोज फर्दाफाश हो रहा है. और अब हेमंत सरकार आदिवासी बहुल इलाकों में भी खुले आम शराब बेचना चाहती है. यह कही से भी न्याय संगत नहीं है. आज इसका राज्य स्तर पर विरोध चल रहा है.ज्ञात हो कि ईचा खरकई बांध विरोधी संघ कोल्हान और 87 गांव के उग्र आंदोलन को देखते हुए ईचा डैम के मुद्दे पर तत्कालीन कल्याण मंत्री और टी.ए.सी उपसमित के अध्यक्ष चंपई सोरेन की अध्यक्षता में समिति बना कर और डूब क्षेत्र में जाकर सामाजिक अक्षेपण कर डैम रद्द करने की अनुशंसा की थी। 10 अक्टूबर 2014 में समिति ने अपनी रिपोर्ट में परियोजना को रद्द करने और रैयतों को उनकी जमीन वापस करने की अनुशंसा की थी. 12 मार्च 2020 से अब तक निर्माण कार्य स्थगित है. परन्तु अब भी झारखंड और उड़ीसा के 126 के ग्रामीणों को विस्थापन का डर  सता रहा है. संघ के अध्यक्ष बिर सिंह बिरुली ने कहा कि अबुआ सरकार ईचा डैम में आदिवासी मूलवासियों के अस्मिता,अस्तित्व और पहचान को डुबाना चाहती है. डैम का प्ररारूप छोटा कर 87 गांव के जगह 18 गांव जलमग्न होने की बात कही जा रही। यह सरासर जुमला है. पूंजीपति टाटा और रूंगटा को डैम से पानी देकर वफादारी निभा रही है. अबुआ सरकार ना होकर पूंजीपति बबुआ सरकार बन चुकी है. जल,जंगल और जमीन सिर्फ झामुमो की बन कर रह गई है. ईचा खरकई बांध विरोधी संघ कोल्हान लगातार विस्थापितों को एकजुट कर डैम को रद्द करने हेतु संघर्षरत है.

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