झामुमो में पुराने वफादार नेता,कार्यकर्ता सिर्फ झंडा धोने तक हैं सीमित, हो समुदाय अपने नेता को भी विधायक के रूप में देखना चाहते हैं

झामुमो में बड़ी तेजी से एक स्लोगन सुनने को मिल रहा है, "अब कि बार वफादार" इस बार सिरका की बहार

सुनील सिरका ने अपने लम्बे राजनीतिक जीवन में झामुमो को मज़बूत करने का काम किए हैं


चाईबासा/संतोष वर्मा: झामुमो में वरीय नेताओं और कार्यकर्ताओं को सिर्फ झंडा धोने और जिन्दाबाद का नारा लगाने तक सीमित रखा जाता है.झारखंड राज्य में अधिकांश झामुमो विधायक अपनी सीट को पुस्तैनी समझने लगे हैं या कहें तो पार्टी सिटिंग विधायक को स्थाई तौर पर रिजर्व कर दिया है. ऐसा ही पश्चिमी सिंहभूम संसदीय क्षेत्र में मझगाँव विधानसभा में हो रहा है, पार्टी के वफादार नेता सुनील सिरका एक लम्बे समय से पार्टी के मजबूती के लिए काम कर रहे हैं, संगठन को मजबूत बनाने में सुनील सिरका के योगदान को नकारा नहीं जा सकता है, साथ आंदोलनकारी भी है.

सिरका ने स्थानीय लोगों को रोज़गार से जोड़ने के लिए ग्रामीण संवेदक संघ का गठन करने का काम किया, आज टेन्डर सेटिंग करने वाले पूंजीपति ठेकेदारों की मोनोपोली को तोड़ने का काम किया है, आज लोकल ठेकेदार को काम मिल रहा है, जिससे लोकल ठेकेदार सिरका के प्रति झुकाव रखते हैं. छेत्र की जनता अपने हो आदिवासी समुदाय के इस नेता को भी विधायक देखना चाहते हैं.

लेकिन ऐसा लगता है कि झामुमो में अपने पार्टी के वर्षों पुराने नेता, कार्यकर्ताओं के दर्द और उनकी भावनाओं से कोई लेना देना नहीं है, ऐसा ही हाल राज्य के अधिकांश विधानसभा में वर्षों पुराने वफादार लोग हेमन्त सोरेन से आशा भरी उम्मीद की राह देख रहे हैं. सूत्र बताते हैं कि सिरका को पार्टी इस बार टिकट देने पर विचार कर रही है. अब देखना है कि पार्टी सिरका पर कितना भरोसा करती है.

ज्ञात हो कि इस बार मझगांव विधानसभा क्षेत्र के मतदाता बदलाव चाह रही है और कह रही है अबकी सुनिल सिरका. चर्चा है की मझगाँव विधानसभा में निरल पूर्ति के कार्यकाल में ईसाई मिशनरी का तेजी से बढ़ना, गिरजा घर बनना, बाहरी पूंजीपति को ठेका देना चर्चा में है, कुल मिलाकर पार्टी के सर्वे में विधायक के खिलाफ एंटी कॉमबेंसी है.

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